Sunday 11 March 2018

प्यार : युगों पुराना, एक ज़िंदा फॉसिल !


अजीब नज़ारा है इन दिनों....
बाज़ार 'वेलेंटाइन वीक' मना रहा है।
अण्डों से अभी-अभी निकले नवजात
नीड़ के बाहर आकर
उड़ने को छटपटा रहे हैं।
सर्दी एक बार जाकर
फिर लौट आयी है।
और मैं..
जाने कितने दिनों बाद
आज तुमको ख़त लिख रहा हूँ।


दो दिनों से हल्का बुख़ार है
डॉक्टर ने गोली देकर
आराम करने की हिदायत दी है।
मग़र कंबल की कसमसाहट
मुझे और बीमार बना रही है।
सो तैयार होकर
बाइक लेकर निकल पड़ता हूँ।
चेहरे पर ठंडी हवा लगते ही
आँखों से आँसू बहने लगते हैं
डॉक्टर ने तो एक ख़ास किस्म का वायरल बुखार बताया
मगर मुझे लगता है
बहुत पहले के जनम की कोई याद
वर्तमान से मिलकर छलक पड़ी है आज !


जाने क्या सोच कर मैंने
चिड़ियाघर वाली सूनी अंधेरी सड़क की ओर
अपनी बाइक मोड़ दी।


घुप्प अंधेरे में
हलके उजाले वाली एक जगह
जहाँ पर एक लड़का और दो लड़कियाँ
स्कूटीनुमा किसी दुपहिया से सट कर खड़े
ज़ोर ज़ोर से हंसते-चिल्लाते
फिर चॉकलेट के लिये झगड़ते
इस बात की तस्दीक करते
कि ये 'चॉकलेट-डे' की रात है।


ओह...
हवा में प्रेम क्यों नहीं खोज पा रहा मैं ?
एक अजीब सा शोर
पंछियों का एक झुंड यकायक
मेरे ऊपर से चीखते हुए गुज़रा।
तभी...
दूर झिलमिलाती एक गुमटी से
लता मंगेशकर का स्वर लहराया,
मैं बरबस वहाँ जाकर रुक गया।


एक छोटी सी गुमटी
गुमटी के कोने में रखा रेडियो
और विविध-भारती स्टेशन पर गूँजते
पुराने नग़मे !!
लगा,
जैसे बाइक पर नहीं
टाइम-मशीन पर सवार होकर निकला हूँ।


ठीक उसी पल
चाँदी से चमचमाते बालों वाले
एक उम्रदराज़ व्यक्ति आये,
हाथों में ड्रिल-कैन लिए हुए।
गुमटी वाले ने एक डिब्बा खोला
वृद्ध ने चुटकी भर सौंफ-सुपारी ली
और फिर अपनी राह चल दिये।
मेरे जेहन में एक तस्वीर क़ैद होकर रह गई
किसी अनचीन्ही याद की जीवंत स्टिल-फ्रेम के जैसी।


प्रीता मेरी,
मेरे लिए प्यार
युगों पुराने रिश्तों के
ज़िंदा फॉसिल्स की तरह है।
म्यूज़ियम में रखे
बेजान पाषण उपकरणों की तरह नहीं।
शायद इसीलिए...
मैं वहाँ खुश नहीं रह पाता
जहाँ खुशियाँ थोपी जाती हैं।


और हाँ,
मैं तुम्हें ख़त लिखूँ या न लिखूँ
तुमको पुकारूँ या न पुकारूँ
तुम्हें दिखाई दूँ या छिप जाऊँ
जब तक हूँ, तब तक...
अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराता रहूँगा।
समझ गईं न ...!


तुम्हारा

देव


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