Tuesday 2 January 2018

कुछ रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते !!





“मोहिनी डाल दी ना !!
रोका था मैंने .......
कि मत बनने दो,
अपनी निगाहों को जादूगर !
तुम्हारे सम्मोहन में बिंध कर
जो अब फिरता हूँ दर-ब-दर
तो लानत ना देना .....
बे-सबब आवारगी
रास आ गयी है मुझको
देखो तो लोगों ने भी
आवारा का विशेषण जोड़ दिया है
‘आवारा प्रेमी’ पुकारने लगे हैं
मुझे अब सब !!!"
वो बोल रहा था
और लड़की सुन रही थी
बाहर तीखी धूप थी
मगर वे दोनों बेपरवाह थे मौसम से !
और वैसे भी तो
पॉश कॉलोनी की
सबसे आख़िरी गली में
कोने की बिल्डिंग के पाँचवे माले पर थे वे दोनों।
लोगों की निगाह लड़के को इतनी चुभती थी
कि वो,
दूर पेड़ पर बैठे परिंदे को भी
खिड़की के काँच से इस पार
कमरे में झाँकने की इज़ाज़त नहीं देना चाहता था।
और लड़की ...
उसके ऊपरी होठों की किनोर पर
पसीने की बूंदों की छोटी सी लड़ी उभर आई थी
जिसे पोंछने की बजाय
वो अपने रुमाल से चेहरे पर हवा कर रही थी।
कमरे में लगा पुराना एयर-कंडिशनर
रुक-रुक कर अपना बोझ ढोते हुये
गर्मी को अपनी ठंडी हवा से
परे धकेल रहा था !!!
लोग कहते हैं उदासी का रंग नीला होता है
और आज
पर्दे के उस पार से
सूरज की रोशनी
पूरे वातावरण को हल्का नीला बनाने पर तुली हुई थी।
लड़के ने चाहा
कि रूफ़-लाइट्स का स्विच ऑन कर दे,
मगर लड़की ने
उसकी हथेली को हौले से पकड़ कर छोड़ दिया।
वो समझ गया
कि आज का दिन,
कृत्रिम प्रकाश पर भी
एतबार करने का नहीं है
कभी-कभी ऐसा होता है ना
कि बिना बोले ही प्रश्न पूछ लिए जाते हैं
और बिना कुछ कहे ही
उत्तर मिल जाया करते हैं।
ना आँखों की भाषा
ना स्पर्श के संकेत
बस...
एक फुट-पटरी की दूरी पर बैठे दो जिस्म,
अलौकिक स्पंदन को माध्यम बना कर
बात कर लिया करते हैं।
ऐसी मुलाकातें
ज़्यादा देर की नहीं होतीं।
बिना बताये ही
मुलाक़ात का वक़्त भी पूरा हो जाता है।
बिना इज़ाज़त लिए
विदाई भी ले ली जाती है।
उस दिन शाम बड़ी जल्दी घिर आई
और देर तक वहीं रही
...... लड़के के पास !
फिर जाने कहाँ से
कुछ धुएँ के छल्ले उभर आए
जो गहरे और गहरे होते गए।
लड़के ने भी
उनसे मुक्त होना नहीं चाहा,
शायद बंधन में ही आज़ादी थी !
वो बीच-बीच में
खिड़की से झाँक कर देखता रहा
और जब रात ने अपना आँचल पूरा फैला लिया
तो वो बाहर निकल आया।
अभी बस डेढ़ किलोमीटर ही चला था
कि गाड़ी ने चलने से इनकार कर दिया।
ना जाने कब टायर, लौहे के एंगल में धंस कर फट गया था।
ओढ़ी हुई सजगता
कभी-कभी मदहोशी बन जाती है।
वो गाड़ी से नीचे उतरा
और एक अंगड़ाई लेकर
उस दिशा में देखा
जिधर लड़की का घर था।
और लड़की ....
सूजी हुई आँखों से
अपनी रुलाई को भींचे,
लगातार आठवीं बार
वही एक गीत सुने जा रही थी।
“मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया।”
कई बार कारण और परिणाम में
कोई संबंध दिखाई नहीं देता।
लड़की रो रो कर थक चुकी थी
लड़का भी गाड़ी का टायर बदल चुका था।
रात को ढलने
और सुबह को आने का
बेसब्र इंतज़ार था।
कुछ रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते
बस आयाम और माध्यम बदला करते हैं,
चिरंतन चलने के लिए !!
है ना ....

तुम्हारा
देव


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