Thursday 18 May 2017

जो मैं ख़ुद हूँ, वो मुझे कतई नहीं चाहिए !





बावरे पीहू,
अलसाई सुबह थी वो
जाग भी जल्दी गयी थी;
कोई सपना देखा था उस दिन मैंने,
स्मृतियों के पार जाकर !
जो याद तो नहीं 
मगर बड़ी खुश-खुश सी थी मैं
तभी तुम्हारा ख़त मिला....

सच कहा तुमने
प्यार बहरूपिया ही होता है।
पढ़कर एक बार जी में आया
कि तुम्हारी कलम चूम लूँ,
लेकिन फिर लगा
कहीं तुमने व्यथित होकर तो ये बात नहीं कही ?
प्यार का पहला एहसास,
बहरूपिया ही होता है।
फिर वो धीरे-धीरे निराकार बनता जाता है। 

याद है,
बचपन में हम
दीवार की मुंडेर पर बैठकर
घंटों इंतज़ार किया करते थे
बहरूपिये का !
उससे डरते भी थे,
उसकी राह भी तका करते थे।

मेरे मन की बात कहूँ .....
किचन के केबिनेट में रखे
सुंदर-सुंदर बाउल्स, काँच की डिशेस
और छोटे नाज़ुक ग्लासेस .....
ये सब भी मेरे लिए
प्यार का ही एक रूप है।
वही आइस-क्रीम, वही फ्रूट-ज्यूस
मगर सर्व करने तरीका
हर बार जुदा...
और-और आकर्षक !
स्वाद-स्वाद चखना,
घूँट-घूँट पीना।
हर बार कुछ अलग,
कुछ अनचीन्हा !

वैसे ना,
प्यार को लेकर मेरे मन में
कुछ अजीब-अजीब ख़याल भी आया करते हैं।
बताऊँ तुम्हें...
मुझे लगता है
कि अच्छा ही हुआ
जो लैला-मजनू की शादी नहीं हुई।
नहीं तो सच कहती हूँ
वे दोनों भी,
एक-दूसरे की कमियाँ खोजने में जुट जाते।
मजनू देर रात घर आता
और लैला दरवाज़ा खोलने में आनाकानी करती।

यक़ीन मानो
जब प्यार को इस नज़रिये से देखती हूँ
तो हँस-हँस के दोहरी हो जाती हूँ।
तुम प्लीज़ मुँह मत बनाना हाँ ;
जानती हूँ मैं
तुम ये सब पढ़कर क्या सोच रहे होंगे।

एक बात और देव
On a serious note !
मैं ये भी सोचा करती हूँ
कि हम भगवान से किसलिए प्यार करते हैं ?
क्यों प्यार करते हैं !
इसीलिए ना,
कि उसके अनगिनत दीवाने हैं।
जो उसको कहीं न कहीं सिर्फ अपना मानते हैं।
और देखो तो
आज तक कोई उससे मिला भी नहीं !

एक राज़ की बात बताऊँ
मैंने भगवान को ‘Him’ मान रखा है।
क्योंकि मैं ‘She’ हूँ !
जो मैं ख़ुद हूँ
वो मुझे कतई नहीं चाहिए !
प्यार भी तो ऐसा ही है
ख़ुद से जुदा-जुदा सा।
इसीलिए तो प्यार अधूरेपन को पूरा करता है।
कोई कुछ पल के लिए
तो कोई उम्र भर के लिए
स्वयं में सम्पूर्ण हो जाता है... प्यार को पाकर !

मेरी एक बात मानोगे
आज दोपहर दो से तीन के बीच
चिलचिलाती धूप और हवा की गरम लपटों के बीच
शहर के उस हिस्से में जाना
जहाँ पुराना शहर खत्म होता है,
और नया शहर शुरू होता है।
वहाँ तुमको
एक पागल चुपचाप घूमता मिल जायेगा। 
उसके बिलकुल सामने जाकर
उसकी आँखों में आँखें डाल देना।
ज्यों ही ऐसा करोगे
वो ज़ोर-ज़ोर से बोलना शुरू कर देगा
कभी अग्रेज़ी में, तो कभी हिन्दी में।
उसे सुनते रहना
मन ही मन उसको प्रणाम करना
और अपने घर वापस आ जाना !

फिर रात के तीसरे पहर
बिस्तर से उठकर बैठ जाना,
और दिन की घटना याद करना
उस पागल की जो बातें याद रह जाये,
उनको जीवन से जोड़ लेना.... हमेशा-हमेशा के लिए !
भूलना मत !!
चलो,
अब लिखते-लिखते मेरा हाथ दुखने लगा।

तुम्हारी
मैं !

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