Thursday 11 May 2017

क्या प्यार भी बहरूपिया होता है ?







वे दो थे,
ना-ना वे दो होकर भी एक थे !
साथ-साथ रहते थे,
प्यार को जीते थे।  
“....तुम्हीं ने तो कहा था
मिलकर चलेंगे साथ
अनजानी डगर पर,
लेकर हाथों में हाथ
दूर उस सहर पर।”

एक लंबी लड़ाई लड़ी थी दोनों ने,
अपने-अपने परिवेश से।
बचपन से ही अकेली थी वो।
और लड़का भी भीड़ में,
तनहा सा रहता था।
“तुम्हीं ने तो कहा था ....
उदासी अच्छी नहीं
जब-तब हो चेहरा नम,
ऐसी बे-मौसम की
बारिश अच्छी नहीं।”

उनका मिलना जैसे एक जादू था।
नज़रें जब मिलीं
तो एक पुंज बन गया,
दर्द की नमी सारी
भाप बन के उड़ गयी।
चैन-ओ-सुकूँ की छांव तले
वो रात-दिन रहने लगे।
“तुम्हीं ने तो कहा था ...
अनंत तक दौड़ो
मेरे साथ मिलकर,
अनजानी राहों को
मंज़िल तक मोड़ो।”

सबकुछ जब बिलकुल
बाधा से परे हो,
क्यों तब ही कोई
अड़चन आ जाती है !  

एकदिन वो लड़की
उसके कांधे लगकर
ज़ोर से सिसक पड़ी
फिर संभलती हुई
रुक-रुक कर बोली।
 “सुनो...
मुझे एक बात से डर लगने लगा है।”

“डर....
कैसा ?
किससे लग रहा है !”
लड़के ने पूछा।

“कैंसर !”
वो बोली ।

उस समय तो लड़का चुप रह गया
मगर उसके बाद
हर गुज़रते दिन से सतर्क होता गया।
मिट्टी का मटका
सादा भोजन
तुलसी का अर्क
हल्दी और गोमूत्र !

उस दिन की बात को
लड़की भूल गयी पर
वो न भूल पाया कभी,
.... प्यार जो करता था !
जंक-फूड तज दिया
स्वाद भी बदल दिये।
प्लास्टिक-नानस्टिक छोड़
प्राकृतिक और ऑर्गनिक, घर ले आया।

लड़की जब उससे
इसका कारण पूछती
तब-तब वो हँसकर, बात टाल देता।
सुबह उसे उठाता, सैर पर ले जाता
हर कोशिश करता
ताकि वो दुःस्वप्न, सच हो ना पाये ! 

एक दिन मगर....
उसकी बदली आदतों से परेशान होकर
लड़की ने उसको उलाहना दे डाला।
जाने क्या-क्या बोल दिया
अनजाने में ही।

उसी रात लड़के को
बाहों के रास्ते
सीने से सटा हुआ दर्द उभर आया।
अजीब सा कसैला, जलन भरा दर्द !
जैसे-तैसे उठकर
वो ख़ुद ही चला गया
इलाज़ के लिये, पास वाले अस्पताल !

अगली सुबह जागकर
लड़की ने देखा तो लड़का नहीं दिखा उसे।  
चंद पन्ने दिखे बस...
एक छोटी डायरी के
.....फड़फड़ाते छटपटाते
और सांस लेती दिखी
एक अधूरी कविता ....

“तुम्हीं ने तो कहा था ...
सपने तो देखा करो
तितली के रंगों से,
जीवन रंगने के लिये
तुम भी तो मचला करो।

किसे क्या हासिल हुआ
ये समझ का फेर है,
तुम्हें कहने का जुनून था
और मुझे तुम्हारा जुनून !”

अचकचा गयी वो,
कविता को पढ़कर
कुछ समझ न पायी
समझकर भी मगर।
डायरी को बंद कर
हौले से फिर
लड़की ने उस पर डोरी लपेट दी।

सुनो...
एक बात पूछनी है तुमसे
क्या प्यार भी बहरूपिया होता है ?
अगर जो ऐसा है
तो आओ मिटा दें….
सारे ओढ़े हुये रूप !
ताकि बाहर आ सके
सच्चा स्वरूप !!
बोलो हाँ ....

तुम्हारा
देव









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