Thursday 6 October 2016

पगले.... मस्त कलंदर क्यों नहीं बन जाते !






सुनो ओ देव,
क्या करने लगे तुम ये !
बावरे तो नहीं हो गये ?
तुम्हारी जिस खूबसूरती की मैं कायल हूँ
उसीसे दूर होने लगे ...?
ज़रूरत क्या है
लोगों से उलझने की
बोलो...!

तुम्हीं कहते हो ना
कि एक नहीं
अनेकों दुनिया फैली हुयी हैं हमारे आस-पास !
तो अपनी दुनिया क्यों नहीं चुन लेते !
इसने ये किया
उसने वो कहा
इन सब बातों में
तुम कब से पड़ने लगे ?
तुम्हारे संसार में
इन बातों के लिए कोई जगह नहीं !
अपनी दुनिया के आयाम पहचानो देव !!
मगर इतना याद रखना
अच्छे और अलग होने का भी मद हो जाया करता है कुछ लोगों को
... उससे बचना !

पगले....
मस्त कलंदर क्यों नहीं बन जाते !
जितना पकड़ोगे
उतना जकड़ोगे
और फिर बंधते जाओगे
गाँठे पड़ती जाएँगी ... नयी-नयी !

अच्छा सुनो !
उस दिन,
तुम नॉक किए बगैर ही क्यों चले आये थे
..... मेरे कमरे में ?
और आ ही गए
तो दृष्टा क्यों नहीं बने ?
सवाल करने लगे थे तुम तो !
हाँ,
मैं गहरे नीले रंग की लिपस्टिक लगाए बैठी थी
तो क्या ....
मेरा मन किया तो लगा ली !
ब्लू मूड भी तो तारी होता है ना कभी-कभी।

एक लड़की है
बोलती आँखों वाली।
जिसके निचले होंठ की
बाहरी किनोर के ठीक बीच में
एक बड़ा प्यारा सा काला तिल है।
यूं तो कई हैं उसको चाहने वाले
मगर एक दीवाना है उसका
बिलकुल तुम जैसा !
जो उससे हर बात करता है
बस प्यार नहीं कह पाता !
वो लड़की भी
अपने होंठों को तिरछा करके
मुस्कुराती रहती है।
बोलती कुछ नहीं !

लड़का हर हफ़्ते-पखवाड़े में
बावरा जाता है।
जब छटपटाहट
उसकी साँसों को जकड़ने लगती है
तो जैसे तैसे शब्दों को चुनकर
हौले से पूछता है
“मैं क्या करूँ ?
और लड़की,
होठों को तिरछा कर हँसते हुये कहती है
“मैं क्या कहूँ ?

तब लड़का,
लगातार लड़की को देखता रहता है।
और फिर बेचैनी का सैलाब
धीरे-धीरे उसके सिर से उतरने लगता है।
लड़का छटपटाहट की घुटन से
ऐसे बाहर आता है
मानो,
डूबे हुये जिस्म की गर्दन उठाये
पानी की सतह पर आकर साँस ले रहा हो।
कितनी अनोखी है
.... ये दुनिया !!!
समझो न प्यारे
कब समझोगे।
और हाँ,
नया नाम अच्छा लगा ... बबली !

तुम्हारी

मैं !

1 comment:

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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