Thursday 15 September 2016

एक रिश्ता जोड़ लिया है मैंने






अरसा हुआ
मगर कुछ चीज़ें
अब भी वैसी ही हैं।
कुछ चीज़ें...
जो बिलकुल नहीं बदलीं।
उन्हीं में से एक है
ढीली टोंटी वाला
ये टपकता हुआ नल !!!
बचपन से सुनता आ रहा हूँ
कुछ चीज़ों के बारे में 
चीज़ें...
जिनको बदलना था
 पर नहीं बदलीं।

किचन की सिंक वाला नल
और वॉश-रूम के दोनों नल
हर बार अधखुले रह जाते हैं।
एक ख़ास तरह से बंद करना होता है उन्हें
और हर बार मैं ...
ये बात भूल जाता हूँ।
ऐसा लगता है
जैसे मेरा रिश्ता है इनसे
जाने कब का...!
किसी के आँसुओं की याद दिलाते हैं मुझे
लगातार रिसते हुये ये नल !!!

कितनी आसानी से कह दी थी
उस दिन तुमने ये बात ....
“हाँ देव,
मैं थोड़े में संतुष्ट हो जाती हूँ
संतोष सुख देता है मुझको
कोई हसरत नहीं
जो छटपटा सके मुझे।”
प्रत्युत्तर में बस
मुस्कुरा दिया था मैं।  
लेकिन अब भी यक़ीन नहीं होता
कि कोई कैसे जी सकता है बेचैनियों के बगैर !!!

अक्सर याद आते हैं
हाथ से फिसले हुये
वो खुशबूदार लम्हे
वो खनखनाती हुई हँसी
और बच्चों सा मासूम वो चेहरा।
गुड़िया मेरी....
तुम हो, पर नहीं हो !
मैं हूँ,
मगर अधूरा सा !

वो लड़की
जिससे मेरी कोई पहचान नहीं थी,
जिसे बस दूर से देखा करता था।  
वो लड़की
जो जूझती रही कैंसर से लगातार
और फिर चली गई,
बिलकुल निर्विकार भाव लिये।
उसके जाने के बाद बाद जाना
कि वो ...
तुम्हारी सहेली थी !
जिस दिन से ये बात पता चली
उसी दिन से
एक रिश्ता जोड़ लिया है मैंने
.... उस लड़की से !
अब मैं
वो किताब तलाश रहा हूँ
जिसे उसने लिखा थे
... जाने से पहले !

जिस्म भी कभी-कभी
सुचालक का काम करता है
दो जिस्म...
एक-दूजे को छूकर
किसी तीसरी आत्मा से  
साक्षात्कार की राह खोल लिया करते हैं।

वो लड़की
अब मुझे बहुत याद आने लगी है।
और नल से लगातार रिसता हुआ ये पानी
उसकी याद में बहते
आँसुओं का सैलाब लगता है।

कभी-कभी मन करता है न
कि अपनी वो सारी बातें
जिनका कि कोई ओर-छोर नहीं
एक ही साँस में कह डालो
और फिर
या तो बिलकुल चुप हो जाओ
या फफक-फफक कर रो पड़ो !
बस इतना ही !
ओह,
फिर से पानी की बूँद टपकने की आवाज़ आ रही है !!

तुम्हारा
देव



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