Thursday 19 May 2016

मर्ज़ तो सबको दिखता है, पर दवा किसी के पास नहीं !



क्या उम्र के साथ
उमंग भी ढल जाती है ?
आज वन्या का फ़ोन आया था
कहने लगी
“अब जीने की इच्छा खत्म हो रही है।”
उसे समझाया
ढेरों इधर-उधर की बातें की
उसका दिल बहलाता रहा
मगर फ़ोन रखने के बाद
मैं उदास हो गया !!!

मन को समझाने के लिए
WhatsApp पर टिक-टैक करता रहा
फिर मन नहीं लगा तो
कमरे का दरवाज़ा खोल कर
ड्योढ़ी में खड़ा हो गया।
बंधन की प्रतीक ड्योढ़ी....
जो कभी-कभी
बड़ी सख़्ती से जकड़ लिया करती है,
पैरों को ही नहीं
....मन को भी !

दिन बड़े हो गए हैं ना
इन दिनों अक्सर दीया-बाती के समय
शाम ढल कर भी नहीं ढलती।
लाइट का स्विच ऑन किया,
और फिर वहीं खड़ा रह गया।

खड़ा-खड़ा जाने क्या सोच रहा था
कि तभी
मंदिर की घंटियों की आवाज़
मेरे कानों में पड़ी;
तो ध्यान आया
कि कितने ही दिनों से
आरती के वक़्त भी
मैं दरवाज़ा लगाकर
कमरे में ही रहता आया हूँ।

ख़ुद में उतरकर
इतना शांत
पिछली बार कब महसूस किया था
याद नहीं आ रहा।
उधर घंटियों की टन्न-टन्न...
और इधर शीतल बयार !
गर्मी के दिनों में
अचानक हो जाने वाली बारिश से उपजी
...मंद-मंद बयार !!
चमेली की इकलौती डाल
घड़ी के पेंडुलम सी लहरा रही है
और मेरे नथुनों में
एक ख़ुशबू सिमट आई
जाने कहाँ से !

नीचे बडी बैठा है
एकदम शांत....
आज तो उसने पूँछ भी नहीं हिलाई
शायद मुझे देखा ही नहीं !
लेकिन दरवाज़ा खुलने की आहट
तो सुनी ही होगी ना उसने !!
शायद वो भी...
मेरी ही तरह ख़ुद में उतर गया है आज !

अब फिर से दरवाज़ा लगा कर
घर के भीतर आ गया हूँ।
एक अजीब सी बेचैनी क्यों है...
क्या वन्या की बात सही थी ?
क्या मेरी भी इच्छाएँ खत्म हो रही हैं धीरे-धीरे !
कुछ समझ नहीं पाता।
ये विचित्र बेचैनी,
क्यों चली आती है बार-बार !
एक ज्योतिष के पास भी गया था
कहने लगे,
“बचपन से ही
बेचैन रहते आए हो तुम !”

मैंने कहा,
“जानता हूँ
आप तो उपाय बताइये !”

तो बोले,
“कोई उपाय नहीं है।”

अब तुम ही कहो
ये भी भला कोई बात हुई
मर्ज़ तो सबको दिखता है,
पर दवा किसी के पास नहीं !

मैं, ना...
दरअसल अपने आस-पास से परेशान हूँ
लोग...
जो मुझ पर थोप दिये गये हैं
बिना किसी वजह के !
परिस्थितियाँ....
जो मुझसे लिपट गयी हैं
जैसे हरे पेड़ पर पीली अमर बेल !
एक दूरी...
जो आकर जम गयी है
मेरे स्व और मेरे बीच !

कभी-कभी ये सोचकर
मन भारी होने लगता है
कि प्यार की उम्र
कम क्यों होती जा रही है
दिन-ब-दिन !
या कि लोग,
अब अनुभव को तरजीह देने लगे हैं
भावना की जगह !!
किसी से कुछ कहता नहीं
कि कोई संदेह ना करने लगे।  
मुझ पर संदेह कर ले तो कोई बात नहीं !
मगर मेरे प्यार पर करे
ये कतई मंज़ूर नहीं !
क्योंकि ये सीधा-सीधा
तुम पर अविश्वास होगा  !

अच्छा सुनो....
कोई आया है बाहर
बडी भौंकने लगा है अचानक
देख लूँ जाकर
शायद कोई उम्मीद हो
रीती ही ना लौट जाये कहीं !
अपना ख़याल रखना !

तुम्हारा
देव 









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