Thursday 20 August 2015

मैंने देखा, एक फ़ीनिक्स.... अपने भीतर !







जाने क्यों
प्रेमी-प्रेमिका ऐसे होते हैं
मर्त्य और अमर्त्य के बीच झूलते से !

जिस पल सबसे ज़्यादा एक-दूसरे को पा लेते हैं
बस उस ही पल
एक-दूसरे को खोकर रीते हो जाते हैं।
अजीब सी असुरक्षा
है ना ...
नहीं तो क्यों जाये परवाना
अपनी शमा के पास जलने !
और क्यों फ़ीनिक्स
अचानक से राख़ हो जाये
खुद होकर !!

मैंने देखा,
अपने भीतर एक फ़ीनिक्स.... 
जो तड़प रहा है
अपनी आख़िरी कविता कहने के लिए
पर उसे आग नहीं मिल रही
जल जाने को !

आज सुबह उठकर
टहल रहा था
अपनी छोटी सी बगिया में
कि,
ये दिखा मुझे।
पतंगे जैसा कुछ
या जंगली तितली कोई
एकदम निर्जीव,निढाल
रास्ते के बीच पड़ी हुयी सी।

सोचा कि
इस बेदम की मुक्ति
किसी के पैरों तले कुचलकर न हो जाये
सो एक शाख से टूटे हुये
पत्ते का आसरा लिया।
और देखो तो
ये पतंगा भी
उस पत्ते से चिपक गया।
ना हिला, ना डुला
उसके पंख भी निस्तेज से रहे
मगर उसकी आँखों में जीवन था।
उसे अपने हाथ पर लिए
देर तक देखा किया।

वो दिन याद करो...
जब पहली बार तुमने मिलने बुलाया था,
उस तनहा कमरे में।  
दूर कुर्सी पर बैठ कर
अपनी हथेली पे ठोड़ी टिकाये
मैं लगातार तुम्हें देखता रहा था।
और तुम
अध-मुंदी पलकों से
कभी मुझे देखतीं
तो कभी खो सी जातीं .... ख़ुद में।

कभी कहीं पढ़ा या सुना था
कि
,
प्राण आँखों से निकलते हैं
कहीं इसीलिए तो
इस जंगली तितली की आँखों में इतनी चमक नहीं !
निकलते हुये प्राणों की चमक ....

अच्छा एक बात कहो
क्यों नाराज़ हुईं थीं तुम
इस पंद्रह-अगस्त को मुझसे !
मुक्ति के वास्ते ... ?

हम फिर-फिर ख़ुद को तकलीफ देते हैं
ये समझकर
कि जैसे कुन्दन निखरता है
हम भी निखर जायेंगे वैसे
मगर ये क्यों भूल जाते हैं
कि हम इंसान हैं
धातु नहीं !


फिर-फिर झगड़ते
और प्यार करते रहते हैं
खुद ही से बस !
ये आदत तो छोड़नी होगी न प्रिय।

कोई क्या कहेगा .....
जब भी ये विचार
हमारे प्रेम की राह में आये
तब एक ही बात सोचना
कि जब हम न होंगे
तो किसी को फुरसत नहीं होगी
हमें याद करने की।
और तब भी अगर
किसी ने हमें याद किया
तो समझ लेना कि
वही सच्ची श्रद्धांजलि है
हमारे प्रेम के प्रति !

तब तक के लिए आओ
हम दोनों तलाशें,
अपनी-अपनी आग...
फ़ीनिक्स बनने के लिये !

और हाँ...
तुम्हें ख़त लिख कर
ज्यों ही बाहर आया
ना तो पत्ता दिखा मुझे
ना ही वो पतंगा
दोनों को हवा उड़ा ले गयी शायद
कहीं दूर ....


तुम्हारा

देव


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