Thursday 9 July 2015

महत्वाकांक्षाओं के पार आ चुका हूँ प्रिये !





“दीमक ज्यों सूखी लकड़ी को चट कर जाती है
   मेरे अंदर की बेचैनी मुझको खाये जाती है”
अक्सर मुझसे ये गजल सुनाने को कहती हो न तुम।
और मैं हमेशा कोई और बात करने लगता हूँ।

ऐसा मैं जानबूझ कर नहीं करता
बस...
फिर-फिर उस दर्द को दोहराना नहीं चाहता
जिसे महसूस करके हम जीते जी बार-बार मरते रहते हैं।

फ़ैमिली, बिज़निस और सक्सेस......
तुम इन तीन ध्रुवों के बीच तालमेल बैठाने में लगी रहती हो।
और मैं...
हर बार हाथ आया सिरा छोड़ दिया करता हूँ।
महत्वाकांक्षाओं के पार आ चुका हूँ प्रिये !

पहाड़ की तलहटी में रहने वाली
वो एकाकी प्रेमिका
अपने प्रेमी की राह तकते जो झुर्रियों तक जा पहुँची
अक्सर मुझे आगाह किया करती है
“क्या देव
अब तो बाहर निकलो
एक ही जगह टिक कर रह गये
अपनी प्रेयसी की बातें किया करते हो बस।”

मैं हँस पड़ता हूँ
कुछ कहता नहीं,
मगर ये सच है
कि जाने कितने युगों के बाद
भटकता हुआ
तुम तक पहुंचा हूँ मैं।
अभी तो एक बूंद आस्वाद भी जी भर नहीं लिया
तुम्हीं कहो
कैसे बेचैनी को पनाह दे दूँ अपने पहलू में।
मेरा चैन लायी हो
अपने साथ तुम।


जाने क्यूँ
आज भी वो बूढ़ा याद आता है
जो बाईस-पच्चीस साल पहले
छोटी सी मंदिरी के बाहर बैठ कर गाया करता था
“तूने व्यरथा जनम गँवाया
चरखे का भेद नहीं पाया”
वो मंदिरी अब विशाल मंदिर में तब्दील हो गयी
बूढ़ा तो जाने कब का खप गया।
मगर उसका निर्गुणी भजन.....
अपनी जड़ें गहरी जमा कर बैठ गया है मेरे भीतर !

जानता हूँ
यूटोपिया ख़यालों में सिमटा एक गर्भस्थ शिशु है
जिसका जस्टेशन पीरियड कभी पूरा नहीं होता
जो कभी जन्म नहीं लेगा।
मगर तब भी....
हर दिल में आस का बीज तो पलता ही है
शिकायतें सिकुड़ रही हैं मेरी
अब हर दिन।

हाँ ये बात दीगर है
कि लोग अब भी
अपनी आस्तीन में इल्ज़ाम पाले बैठे हैं मेरे लिए।
लो फिर भटक गया अपनी बातों से ....


हुआ यों,
कि कल शाम ऑफिस से आते वक़्त
एक ऑटो दिखा।
जिस पर लिखा था
“कर ले बेटा ड्राईवरी फूटे तेरे करम
खाना मिलेगा कभी कभी सोना अगले जनम”
कोई ऐसे भी इज़हार कर सकता है
अपने दर्द का.....
हतप्रभ सा मैं उस ऑटो के पीछे चलता रहा
जैसे ही ड्राईवर का चेहरा देखना चाहा
चौराहा आ गया
और हम दोनों दो अलग-अलग रास्तों पर मुड़ गये।

सुनो .....
तुम कब आओगी
तुम्हारे साथ मिलकर उस ऑटो वाले को ढूँढना चाहता हूँ
और फिर उसी ऑटो में बैठकर
तुम्हें सराफा की चाट खिलाने ले जाना चाहता हूँ
हाँ,
एक ख़्वाहिश और है मेरी
कि जब हम उस ऑटो में बैठे हों
तब एक गीत कहीं बज उठे
“तेरे दुख अब मेरे
मेरे सुख अब तेरे
तेरे ये दो नैना
चाँद और सूरज मेरे”
ऐसा होगा ना.....
बोलो !

तुम्हारा

देव



















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