Thursday 19 February 2015

मैंने स्वीकार कर लिया उसे





पता है सबसे दुखद क्या है ?
कि आप अपनी याद भी वापस न ला सको....
अपनी याद भी किसी के पास गिरवी रखनी पड़े।
सुनने में अटपटा लगता है
पर मेरे साथ ऐसा हुआ है।
मैंने नहीं चाहा था कि मैं उससे प्यार करूँ....
मैंने ये भी नहीं चाहा कि वो मुझसे प्यार करे।
लेकिन उसने ऐसा किया...
और टूट कर किया, खुल कर किया।
इतना किया कि मैं खुद को भूल गयी।
और ज्यों ही मैंने खुद को भुलाया.....
उसने मुझे भुला दिया !!!

भुलाया तो भुलाया....
लेकिन वो मिट्टी भी छीन ली,
जहाँ मैंने अपना प्यार दफन किया था।

उसके बाद मैंने उन यादों के सहारे जीना सीखा,
यादें.... जो कभी हमारा वर्तमान थीं।  
मैं हर उस जगह पर जाती
जहाँ ले जाकर उसने मुझे प्यार का मतलब सिखाया था
मैं हर वो बात दोहराती
जिसे उसने प्यार की ज़रूरत बताया था।
लेकिन मैं तब अंदर से हिल गयी;
जब मैंने देखा,
कि वो हर एक को उसी जगह ले जा रहा है।
हर एक के साथ वही बात दोहरा रहा है।

फिर मेरे भीतर एक कड़वी बेल पनपने लगी
... बहुत भीतर !!!
लगा जैसे वो मुझे ही बे-पर्दा कर रहा है
बस शक्लें बदल गयी हैं।
अब मैं उससे दूर भागने लगी।
लेकिन मुझे धीरे-धीरे ये प्रतीत हुआ,
कि वो तो मेरी नस-नस में विद्यमान है।
एक दिन आईने के आगे खड़ी हुई....
तो उसकी सूरत दिखने लगी !!
अनजाने ही उसके चेहरे पर नाखून गड़ा दिये
पर जो रिस रहा था, वो मेरा ही खून था।

फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैंने स्वीकार कर लिया उसे
दे दी इजाज़त उसे मेरे साथ रहने की !
साँस-साँस, लम्हा-लम्हा !!!
और अचानक एक दिन लगा कि मैं खास हो गयी हूँ
मेरे आस-पास रहने वालों के लिए !
मेरे इर्द-गिर्द डोलने वालों के लिए !!
अब कोई मेरा भी दीवाना है,
मुझे भी वैसे ही चाहता है,
....जैसे कि मैंने चाहा था किसी को !

ज़िंदगी सिर्फ अनंत, अथक सिलसिला नहीं
... उत्सव भी है!

प्रिय देव,
कल ये ख़त मुझे किसी ने भेजा
मैंने सोचा तुमसे बाँट लूँ।
खत लिखते रहना...

तुम्हारी


मैं ! 


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