Wednesday 2 July 2014

कुछ भी तो आकस्मिक नहीं है !!!


आज देर तक उस लड़की से बातें करता रहा।
लड़की .... जो उसकी उम्र से कहीं आगे है .... !
नहीं जानता कि उससे क्यों बातें करता हूँ
नहीं जानता कि उसमें क्या ढूँढता हूँ। 

उसने मुझसे आज एक वादा लिया .... पहाड़ों पर साथ चलने का वादा।
फिर एक कविता सुनाई।
उसी पल कविता लिखी , सुनाई और भूल गयी।
लेकिन उसका भाव कुछ यूँ है

"बहुत दूर .... अनजानी वादियों में
बर्फ़ीले पहाड़ों के ऊपर
चाय के दो गर्म प्याले , अपने सामने रख कर
मैं करूंगी तुम्हारा इंतज़ार …… !"

पर कब ?
ये उसे भी नहीं पता ।
शायद तब , जब उसे बुलाएगा कोई पहाड़ों पर।
जिससे वो बातें तो करती है , लेकिन जानती नहीं उसे।
मैंने किसी का नाम लेकर उसे छेड़ा तो हँस पड़ी खिलखिला कर
हँसते हुए बोली … धत्त् !!

फिर कहने लगी
" आकस्मिक कुछ भी नहीं है यहाँ ,
मात्र संयोग नहीं है कोई भी मिलन। "
बोली ....
" दो प्राणियों के बीच एक अंतर हमेशा रहता है , उनमें मतभेद भी रहते हैं
यही तो वो खूबसूरती है , जिसमें रिश्ते की सुगंध बसती है। "

मेरे हाथ को अपनी उँगलियों का सहारा देकर देखती रही निर्निमेष ।
फिर धीरे से बोली
" मैंने सब को माफ़ कर दिया , अब तुम भी कर दो। "
रोता रहा मैं देर तक ,
भीगती रही मेरी आँखों की कोरें !!!

वो हँसती रही अपना सारा प्यार मुझ पर उँडेल कर
और मुझे लगा कि मेरे आँसू मोती बन गए हैं
दोनों यूँ ही बैठे मौन को जीते रहे
और फिर मैं चला आया घर के उस कोने में , जहाँ जाकर मैं खुद से भी छिप जाना चाहता हूँ ।

पता नहीं क्या सोचता हुआ , जाने कितनी देर खड़ा रहा मैं वहाँ।
तभी अचानक लगा कि कोई मुझे देख रहा है
नज़र उठायी तो सामने चाँद था।
भरा-पूरा , गोल-गोल प्यारा सा चाँद मुझे निहारे जा रहा था
मुझसे बातें कर रहा था … बैसाखी का चाँद !

और मैं हतप्रभ सा ये सोच रहा था
कि इतनी विशाल पृथ्वी … तिस पर सूई की नोक के हज़ारवें हिस्से से भी महीन ये गुपचुप सा कोना
और देखो , चाँद ने मुझे ढूँढ ही लिया
कुछ भी तो आकस्मिक नहीं है
कुछ भी तो नहीं !!

तुम्हारा
देव

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