Friday 4 July 2014

सौन्दर्य तो झर जाने में है ....

प्रिय देव ,

जानते हो मुझे तुम्हारी कौन सी बात सम्मोहित करती है ?

तुम्हारी दीवानगी ....

कि ठोस बर्फ पर चलता हुआ एक अनाड़ी बच्चा गिर कर उठता है , उठते ही गिरता है
फिर – फिर उठता गिरता है ...
लेकिन थकता नहीं , हारता नहीं !

वरन नर्म मुलायम बर्फ को सँजो कर , कौतूहल से देखता है उसके कणों को !!!
किरणों के सामने कर उसे झिलमिलाता है ,
मुँह में रख कर उसका स्वाद महसूसता है,
... पिंघलती हुयी बर्फ में ज़िंदगी तलाशता है !

सुनो देव ,
यूँ ही बच्चे बने रहना !
कभी थकना मत ... हार भी मत मानना ।
चाहे जितनी मोटी बर्फ की तहें जमी हों तुम्हारे रास्ते में !!!

सोच रहे होंगे कि इन उमस भरे दिनों में बर्फ कि याद क्यों आ गयी...
अभी – अभी लौटी हूँ ना बर्फीले प्रदेश से ।
वो यादें और एहसास अभी वैसे ही जीवंत हैं , जैसे कि वर्तमान !!!

और हाँ ...
प्रेम कि कली को फूल बनने से कभी मत रोकना ,
कभी मत टोकना ....

कच्ची कली की सार्थकता तभी तक है, जब तक कि वो शाख पर है ।
यदि उसकी हरियाली छिन गयी तो फिर वो किताबों में रह जाएगी ' हर्बेरिअम ' बन कर !!!

प्रेम का भाव शाश्वत है देव ...
पूरी तरह खिल उठना ही जीवन को मायने देता है ।
और तब भी हमें प्रीत के उस पुष्प को तोड़ने का हक़ नहीं !
उसका सौन्दर्य तो झर जाने में है ।

कभी ऐसा गुलाब देखा है ?
जो पूरी तरह खिल कर आधा झर गया हो और जिसकी आधी पंखुरियाँ बच रही हों ....
अगले दिन झरने के इंतज़ार में !

वो गुलाब ही तो है प्यार की पराकाष्ठा !!!
हम भी पहुँच सकते हैं उस पराकाष्ठा तक...
बस वो विश्वास बना रहे ,
अपने पिय की आस का ...
अपनी प्रीत की प्यास का !!!
....

तुम्हारी

मैं !




1 comment:

  1. सचमुच प्यार की पराकाष्ठा हैं आपके ये प्रेम पत्र !

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